संपादकीय

एक सलाम जवानों के नाम : उड़ी से ढाका को निकलीं साइक्लिस्ट दो बेटियां

प्रो. श्याम सुंदर भाटिया

एक सलाम जवानों के नामः 2951 किमी की यात्रा के दौरान पहुंचीं लखनऊ, हौसला अफजाई को मुरादाबाद से लखनऊ पहुंचे माउंटेनियर रवि कुमार फाउंडेशन के अध्यक्ष एवम् जाने-माने समाजसेवी सरदार गुरविंदर सिंह और सचिव मनोज कुमार, 06 दिसंबर को पर्वतारोही सबिता महतो ने कमान अमन सेतु से अपनी साइक्लिंग का किया शंखनाद, दिल्ली में संग-संग हो गईं उनकी सखा एवम् पर्वतारोही अनामिका बिष्ट भी, 16 जनवरी को ढाका पहुंचने का लक्ष्य

कड़ाके की सर्दी, हांड कपा देने वाली हवाएं, बर्फबारी, कहीं-कहीं कोहरे की फुहार को चीरते हुए भारत की दो पर्वतारोही बेटियां- सबिता महतो और अनामिका बिष्ट जोश, जुनून, देशप्रेम और संकल्प से लबरेज़ हैं। बिहार और उत्तराखंड की ये बेटियां साइकिल पर सवार होकर रोज एक सौ किमी की दूरी विशाल पर्वत पर ऊंचाई की मानिंद नाप रही हैं। प्रतिदिन शाम पांच बजे से पहले-पहले तय मंजिल तक पहुंच जाती हैं। बकौल सबिता महतो, जवान सरहद पर हों या मैदान में, समुद्र में हों या आकाश में इनकी सेवाएं बेमिसाल हैं। हमारी साइक्लिंग का मकसद- एक सलाम जवानों के नाम ही है। महतो ने उड़ी के कमान अमन सेतु से इस साइक्लिंग का श्रीगणेश किया। सबिता की दोस्त अनामिका बिष्ट कहती हैं, मुझे भी उड़ी से शामिल होना था, लेकिन सेहत नासाज़ होने के चलते मैं दिल्ली में शरीक हो पाई। मुरादाबाद के माउंटेनियर रवि कुमार फाउंडेशन के अध्यक्ष एवम् जाने-माने समाजसेवी सरदार गुरविंदर सिंह को इन बेटियों के अदम्य साहस का पता चला तो वे अपने सचिव मनोज कुमार के संग लखनऊ पहुंच गए। श्री सिंह ने न केवल दोनों बेटियों का गर्मजोशी से स्वागत किया, बल्कि ढाका तक आने वाली किसी भी दुश्वारी में याद करने का वायदा भी किया। ये बेटियां 37वें दिन 16 जनवरी को ढाका पहुंच जाएंगी। उड़ी से ढाका की दूरी 2951 किलो मीटर है। यह बात दीगर है, इन बेटियों के नाम तमाम रिकॉर्डस और इनकी झोली में तमाम अवार्डस भी हैं।

पर्वतारोही सबिता महतो : मैं दुनिया के शीर्ष पर पहुंचकर भारत का तिरंगा फहराना चाहती हूं। इस मिशन का प्रारम्भ पटना से कन्याकुमारी तक साइकिल के जरिए करना है। 70 दिन सड़क और फिर पहाड़ों पर बिताना चुनौतीपूर्ण होगा। उन्होंने उम्मीद जताई, यह एक विश्व रिकॉर्ड होगा। फैमेली बैकग्राउंड इतनी मजबूत नहीं है, मैं अपने बूते माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई कर सकूं। उल्लेखनीय है, छपरा के पानापुर कस्बे की सबिता इस अधूरी चाह को मुकम्मल करने के लिए यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को भी ट्वीट कर चुकी हैं। सबिता सतोपंथ पर्वत पर तिरंगा लहरा चुकी हैं। हिमालय से सतोपंथ पर्वत 7500 मीटर ऊंचाई पर है। वह नेपाल के थोरानग्ला की यात्रा भी कर चुकी हैं। यह 5416 मीटर पर है। वह 2017 में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ की भी अलख जगा चुकी हैं। सबिता की झोली में एक और अनूठा रिकॉर्ड है। 2022 में वह दुनिया की सबसे ऊंची सड़क उमलिंगला पर साइकिल का सफर तय कर चुकी हैं। ऐसा करके वह दुनिया का पहली महिला साइक्लिस्ट बन गई हैं। मछली विक्रेता की यह बेटी टाटा स्टील की नौकरी छोड़कर ऑल इंडिया ट्रैवलिंग के दौरान 12,500 किमी की दूरी तय करने का रिकॉड भी बना चुकी है। अमूमन देश के सभी सूबों के अलावा वह श्रीलंका, भूटान, नेपाल का भी दौरा कर चुकी हैं। सबिता जल्द गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड के लिए आवेदन करेंगी।

पर्वतारोही अनामिका बिष्ट : उत्तरकाशी की यह बेटी अनामिका बिष्ट यूरोप महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटी एलब्रुस-5642 मीटर का सफल आरोहण कर चुकी है। अनामिका माउंट एवरेस्ट का सफल आरोहण करने वाली उत्तरकाशी की पहली महिला पर्वतारोही है। वह इस चोटी की चढ़ाई का स्मरण करते हुए कहती हैं, वहां का तापमान माइनस 20 डिग्री था, जबकि 90 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही तेज हवाएं …. इनके बीच लड़खड़ाते हुए कदमों के संग-संग जहन में बस एक ही शब्द चल रहा था- जीत। उन्होंने इस अभियान का शंखनाद सात सदस्यीय टीम के संग मास्को से किया था। मौसम अनुकूल न होने के कारण चार सदस्य आरोहण नहीं कर पाए, मगर लेफ्टिनेंट रोमिल के संग-संग बेंगलुरु की गायत्री ने सफल आरोहण कर भारत का सिर गर्व से ऊंचा किया। अनामिका ने इस सफलता का श्रेय अपने पिता श्री अनिल बिष्ट और मां विजयलक्ष्मी बिष्ट को दिया। अब उनकी नज़र अर्जेंटीना की सबसे ऊंची चोटी माउंट एकोंगा-6961 मीटर पर है। वह इस तैयारी में जुटी हैं। अनामिका उत्तरकाशी के बरसाली गांव की रहने वाली हैं और बचपन से ही ट्रेकिंग का जुनून उनके ऊपर सवार था। इसी जुनून को अंततः उन्होंने अपना सपना बनाया।

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