Bombay high court: मुस्लिम महिलाओं को तलाक के बाद दूसरी शादी करने पर भी गुजारा-भत्ता बॉम्बे हाई कोर्ट का बड़ा फैसला…
बॉम्बे हाई कोर्ट ने तलाक के बाद गुजारा भत्ता से जुड़े बड़ा फैसला सुनाया
मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने तलाक के बाद गुजारा भत्ता से जुड़े एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि कोई भी तलाकशुदा मुस्लिम महिला बिना किसी शर्त के अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है। भले ही उसने दूसरी शादी कर ली हो। बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस राजेश पाटिल ने 2 जनवरी को इस मामले में दिए अपने फैसले में कहा, ‘मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम- 1986 (एमडब्ल्यूपीए) का सार यह है कि तलाकशुदा महिला वह अपने पूर्व पति से भरण-पोषण के लिए गुजारा भत्ता लेने की हकदार है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसने दोबारा शादी कर ली है.’
हाई कोर्ट ने शख्स की याचिका खारिज कर दी
जस्टिस पाटिल ने शख्स द्वारा अपनी पूर्व पत्नी को एकमुश्त भरण-पोषण भत्ता देने के पिछले दो आदेशों को दी गई चुनौती को भी खारिज कर दिया. कोर्ट ने साफ किया कि धारा 3 (1) (ए) के तहत पति-पत्नी के बीच तलाक ही पत्नी के लिए भरण-पोषण का दावा करने के लिए पर्याप्त है। ऐसा अधिकार… तलाक के दिन ही स्पष्ट होता है।
आपको बता दें कि इस जोड़े की शादी फरवरी 2005 में हुई थी और दिसंबर 2005 में एक बेटी का जन्म हुआ। इसके बाद पति काम के लिए विदेश चला गया, इसलिए जून 2007 में पत्नी और उनकी बेटी अपने माता-पिता के साथ रहने चली गईं। इसके बाद अप्रैल 2008 में पति ने रजिस्टर्ड डाक से महिला को तलाक दे दिया।
9 लाख रुपये भरण-पोषण भत्ता देने का आदेश
ऐसे में महिला ने एमडब्ल्यूपीए के तहत अपने और अपनी बेटी के भरण-पोषण के लिए आवेदन किया. अगस्त 2014 में महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए चिपलुन मजिस्ट्रेट ने उसे 4.3 लाख रुपये का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। फिर मई 2017 में खेड़ सेशन कोर्ट ने इसे बढ़ाकर 9 लाख रुपये कर दिया.
ऐसे में शख्स ने इस आदेश को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी
जहां जस्टिस पाटिल को बताया गया कि उसने अप्रैल 2018 में अपनी पत्नी को तलाक दे दिया था और महिला ने अक्टूबर 2018 में दूसरी शादी कर ली है. पति के वकील शाहीन कपाड़िया और वृषाली मेंदाद ने कहा कि वह वह उसके भरण-पोषण का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं है क्योंकि उसने दूसरी शादी कर ली है। उसने अदालत को बताया कि वह इस राशि की तभी तक हकदार है जब तक वह दोबारा शादी नहीं कर लेती।
न्यायमूर्ति पाटिल ने कहा कि एमडब्ल्यूपीए में उल्लिखित सुरक्षा “बिना शर्त” है और अधिनियम में कहीं भी “पुनर्विवाह के आधार पर पूर्व पत्नी को उपलब्ध सुरक्षा को सीमित करने का इरादा नहीं है”। इसके साथ ही उन्होंने कहा, ‘यह कानून मुस्लिम महिलाओं की गरीबी को रोकने और तलाक के बाद भी सामान्य जीवन जीने के उनके अधिकार को सुनिश्चित करने का प्रयास करता है। इसलिए, अधिनियम का विधायी इरादा स्पष्ट है। यह ‘सभी’ तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए है |