इंडिया एज न्यूज नेटवर्क
दुर्ग : विकासखंड धमधा के ग्राम पंचायत पथरिया में जिला प्रशासन, मत्स्य पालन के विस्तार के लिए बायोफ्लॉक सिस्टम द्वारा नवाचार कर रहा है। 15 हजार तिलापिया मछलियों के बीज से इसकी शुरुआत पथरिया के महिला ग्राम संगठन की 10 दीदियों द्वारा की गई है। जिसमें निषाद वर्ग से 7 महिलाएं कार्य कर रहीं हैं। पथरिया (डोमा) के गौठान में मछली पालन के लिए 7 लाख 50 हजार की लागत से बायोफ्लॉक का इंफ्रास्ट्रक्चर के रूप में 7 टंकियां बनाई गई हैं व 50 हजार की अतिरिक्त राशि चारे (प्रोबायोटिक) व अन्य उपकरणों में खर्च की गई है।
“कोयतुर फिश फार्मिंग“ से ट्रेनिंग प्राप्त प्रशिक्षक ने दी है ट्रेनिंग- मतस्य विभाग की उपसंचालक श्रीमती सुधा दास ने बताया कि विभाग द्वारा ग्राम संगठन कार्यकर्ताओं को बायोफ्लॉक से संबंधित इंट्रेक्टिव ट्रेनिंग देने के लिए लोकल स्तर पर संबंधित कार्य करने वालों से संपर्क साधा गया। जिसमें कुम्हारी की सुश्री वंदना सुरेन्द्र को प्रशिक्षण के लिए चुना गया। सुश्री वंदना सुरेंद्र कोयतुर फिश फार्मिंग से ट्रेनिंग ले चुकी हैं और कुम्हारी में स्वयं का बायोफ्लॉक का स्टार्टअप कर रही हैं। ग्राम संगठन की दसों महिलाओं को इंट्रेक्टिव तरीके से एक दिन का लाईव सेशन कराया गया है। उन्हें बायोफ्लॉक से संबंधित अपडेट निरंतर मिले इसके लिए उनका एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया है। जिसमें समय-समय पर उन्हें विडियो और संबंधित जानकारियां उपलब्ध कराई जाती हैं।
मछलियों के लिए बोरी तहसील का मार्केट तैयार- पथरिया में बोरी को नवीन तहसील का दर्जा दिए जाने के बाद यहां का स्थानीय मार्केट खपत के दृष्टिकोण से एक बड़े मार्केट के रूप में तब्दील हो चुका है। इसके साथ-साथ गांव में भी और नजदीकी हाट बाजारों में भी मछली की बिक्री की जा सकेगी।
04 क्विंटल मछली से साढ़े तीन लाख की शुद्ध कमाई 6 महीने में- बायोफ्लॉक की 7 टंकियों का निर्माण कराया गया है। जिसमें कुल 15 हजार मछलियों के बीज डाले गए हैं। प्रत्येक मछली लगभग 500 ग्राम से लेकर 1 किलोग्राम वजन के लिए बढ़ाई जाएगी। अनुमानित आंकड़ा लगभग 4 क्विंटल के करीब है। जिससे शुध्द कमाई का आंकड़ा लगभग साढ़े तीन लाख होने की उम्मीद है।
बर्ड नेट, डिसोल्व ऑक्सीजन, फ्रेश वाटर, सॉल्ट वाटर, टेस्टिंग किट व टीडीएस मीटर से सुसज्जित है बॉयोफ्लॉक- पथरिया के बॉयोफ्लॉक टैंक सिस्टम को बेहतर तरीके से क्रियान्वित करने के लिए इसमें विभिन्न प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं। क्योंकि मछलियां पानी के अंदर समान्यतः डिसोल्व ऑक्सीजन को ग्रहण करती हैं, इसलिए डिसोल्व ऑक्सीजन टेस्टिंग किट उपलब्ध कराई गई हैं। ताकि दीदियां समय-समय पर पानी में ऑक्सीजन की स्थिति पता लगाकर वस्तु स्थिति अनुरूप निर्णय ले सकें और ज्यादा से ज्यादा फिश ग्रोथ हासिल कर सके। इसके अलावा टैंक के अंदर मछलियों को सुरक्षित रखने के लिए बर्ड नेट भी लगाए गए हैं। ताकि पक्षी मछलियों को अपना चारा न बना सके। फ्रेश वाटर, साल्ट वाटर, टेस्टिंग किट, टी.डी.एस. मीटर, वाटर पंप, पी.एच. मीटर, टेम्परेचर मीटर, सोलर पैनल और बैटरी बैकअप सिस्टम इत्यादि भी बायोफ्लॉक टैंक के लिए उपलब्ध है।
सहजीविता बायोफ्लॉक की सबसे बड़ी विशेषता- फिशरी इंस्पेक्टर धमधा की सुश्री स्वीटी सिंह ने बायोफ्लॉक सिस्टम के संबंध में विशेष जानकारी देते हुए बताया कि सहजीविता इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। जिसमें जलीय जीव और परपोषी बैक्टीरिया और सूक्ष्मजीव आपस में सहजीवी प्रक्रिया द्वारा एक इकोसिस्टम तैयार करते हैं। परपोषी बैक्टीरिया मछली के वेस्ट प्रोडक्ट को अपना आहार बनाते हैं और आगे चलकर हाई प्रोटीन में तब्दील होकर मछलियों का चारा बनते हैं। इस तरीके की पुनरावृत्ति से एक साइकिल निर्मित होती है जिससे पानी साफ रहता है, मछली बीमार नहीं पड़ती और एक ही स्थान पर परपोषी बैक्टीरिया और मछली दोनों को अपना आहार मिल जाता है। यही कारण है कि बायोफ्लॉक सिस्टम जैव सुरक्षा व इको फ्रेंडली सिस्टम दोनों का समर्थन करता है।
उप संचालक श्रीमती सुधा दास ने बताया कि कलेक्टर श्री पुष्पेन्द्र कुमार मीणा के मार्गदर्शन में जिले में बायोफ्लॉक जैसे नवीनतम जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को अपनाया जा रहा है ताकि कम मार्जिन वाले मत्स्य पालक को भी ज्यादा से ज्यादा लाभ पहुंचाया जा सके। उन्होंने बताया कि बायोफ्लॉक सिस्टम द्वारा शुरुआती इन्वेस्टमेंट व मॉनिटरिंग सिस्टम से 50 से 70 प्रतिशत तक इस व्यवसाय को कॉस्ट इफेक्टिव बनाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में मछली पालन को खेती का दर्जा मिलने से मछलीपालन के लिए सुविधाओं में जहां वृद्धि हुई है वहीं इस व्यवसाय से कई महिला स्व सहायता समूह इस व्यवसाय से जूड़ रही हैं। इसमें और विस्तार हो इसके लिए मतस्य संपदा योजना व अन्य योजनाओं की जानकारियों का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।