बस्तर
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पिछले 10 सालों में पांच बड़ी घटनाओं पर न्यायिक जांच आयोग गठित, अब तक रिपोर्ट पेश नहीं

छत्तीसगढ़ में पुलिस और नक्सली की मुठभेड़ में आदिवासी समुदाय को काफी नुक्सान उठाना पड़ता है. नक्सली आम आदिवासियों को पुलिस का मुखबिर बताकर जान से मार देते हैं

बस्तर : छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सली और पुलिस के बीच मुठभेड़ होते रहे हैं, जिसका सबसे ज्यादा नुकसान बस्तर के आदिवासियों का हो रहा है. पुलिस हो या नक्सली दोनों ही तरफ के निशाने पर आदिवासी ही हैं. विश्व मानव अधिकार के मौके पर एबीपी लाइव ने जाना कि बस्तर में पुलिस और नक्सलियो के बीच आदिवासी की स्थिति चक्की के दो पाटों के बीच पिसने जैसी है. आरोप है कि आदिवासियों को नक्सली और नक्सल सहयोगी के नाम पर जेल में सालों तक डाला जाता है और फर्जी मुठभेड़ में इन्हें नक्सली बताकर मारा जाता है।

वहीं दूसरी तरफ नक्सली भी इन्हें नहीं छोड़ते, नक्सली इन्हें पुलिस का मुखबिर बताकर मार देते हैं. विडम्बना वाली बात यह है कि सरकारें भी इन आदिवासियों को न्याय दिलाने में विफल साबित हो रहीं हैं या यह कहिए कि इसके लिए प्रयास भी नहीं करती. तभी बस्तर में अब तक हुई घटनाओं को लेकर बने न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट आने के बाद भी अब तक इन मामलों को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

पांच घटनाओं पर गठित की गई न्यायिक जांच 

बस्तर संभाग में अलग अलग घटनाओं को लेकर अब तक बने पांच न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट सामने आ चुकी है, लेकिन सरकार की तरफ से इस पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है. आयोग के रिपोर्ट देने के बाद भी नतीजे शून्य हैं. बस्तर में पिछले 10 सालों में पांच बड़ी घटनाओं पर न्यायिक जांच आयोग गठित की गई. इसमें ताड़मेटला, सारकेगुड़ा, एड़समेटा, झीरमघाटी और भीमा मंडावी हत्याकांड शामिल हैं. सबसे खास  बात यह है कि इनमें से चार मामले की रिपोर्ट को आने में 8-8 साल तक लग गए. इसके बाद भी जब आयोग ने रिपोर्ट पेश की तो इस पर कार्रवाई तक नहीं हुई है, पीड़ित आदिवासी आज भी अपने न्याय के अधिकार के तहत सरकार की तरफ टकटकी लगाए हुए हैं, लेकिन नतीजा नहीं आ रहा।

आदिवासियों की लड़ाई अभी भी जारी

ऐसा नहीं है कि आदिवासी सिर्फ पुलिस से ही प्रताड़ित हैं बल्कि उनका नक्सलियों के हाथों भी जान का नुकसान हो रहा है. नक्सली जिनसे दुश्मनी होती है उन पर पुलिस का मुखबिर होने का आरोप लगाकर उनकी हत्या कर देते हैं. कई बार यह हत्या इतनी दर्दनाक होती है कि जनअदालत में नक्सली सैकड़ों ग्रामीणों व उनके परिवार वालों के सामने गला रेंत देते हैं. इतना ही नहीं संगठन में जोड़ने से लेकर उनके लिए छोटी मोटी चीजें उपलब्ध कराने के लिए भी दबाव बनाते हैं जो बाद में नक्सल सहयोगी होने का आधार बन जाता है. पिछले तीन साल की बात की जाए तो  अब तक नक्सलियों ने 40 से अधिक लोगों को पुलिस का मुखबिरी बताकर उनकी  हत्या कर दी है. मुठभेड़ तो कभी फर्जी गिरफ्तारी से परेशानआदिवासियों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।

अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां दर्जनों मामले हैं जिसे आदिवासियों ने फर्जी बताया है. इसमें मुठभेड़ व आदिवासियों की मौत दोनों शामिल हैं, कई मामले तो न्यायिक आयोग तक में पहुंचे और आयोग ने भी इसे फर्जी बताया है. एड़समेटा और सारकेगुड़ा इसके उदाहरण हैं जिनकी रिपोर्ट आयोग ने सरकार को सौंप दी है, फिर भी कुछ नहीं हुआ।

सालों तक नहीं होता ट्रायल

बस्तर में बुरकापाल की एक घटना है जिसमें पुलिस ने घटना के बाद अलग-अलग इलाकों से करीब 122 लोगों को नक्सली या उनका सहयोगी बताकर गिरफ्तार  किया था. पहले तो कई सालों तक इनका ट्रायल ही नहीं हुआ. इसके बाद करीब ट्रायल शुरू हुआ तो पुलिस इन्हें नक्सली साबित नहीं कर पाई, अंत में अदालत ने सभी 122 को दोषमुक्त किया. ऐसे कई मामले हैं जिनमें मानव अधिकार का सीधा उल्लंघन होता रहा है. फिलहाल बस्तर के ऐसे कई आदिवासी हैं जो मानव अधिकार आयोग की तरफ उम्मीद की आस लगाए बैठे हैं और धीरे-धीरे ही सही आदिवासियों को न्याय मिलने की पूरी उम्मीद है।

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