कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है 2023 में
अवधेश कुमार
हर नया वर्ष पुराने वर्ष का ही विस्तार होता है । ईसा संवत 2023 भी इसका अपवाद नहीं है। वर्ष 2022 के आरंभ और अंत तक घटी घटनाएं तथा अनेक घटनाओं की तैयार होती आधारभूमि से ही 2023 का ताना-बाना खड़ा होगा। इस वर्ष का सूर्योदय ऐसे समय हुआ जब पूरी दुनिया में कोरोना फिर भय पैदा कर रहा है। पिछले तीन वर्षों में कोरोना ने पूरी दुनिया को हलकान किया है। इसका प्रकोप कैसा होगा, कितना होगा, होगा कि नहीं होगा यह सब भविष्य के गर्त में है लेकिन हमारे पास सुरक्षा के हरसंभव उपाय करने तथा आक्रमण से बचाव की तैयारी के अलावा कोई चारा नहीं है। कोरोना केवल एक बीमारी नहीं है। यह अपने साथ आर्थिक- सामाजिक- सांस्कृतिक समस्याएं लेकर आता है। निश्चित रूप से आम लोग ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि फिर कोरोना की त्रासदी हमारे देश में न आए। पिछली लहर को आधार बनाकर गलत आंकड़े, गलत तथ्य प्रस्तुत करने के साथ यह भय भी पैदा किया जा रहा है कि अस्पतालों में व्यवस्थाएं आने वाले खतरों के समक्ष नाकाफी हैं। अगर कोरोना का रूप विकराल हुआ तो पहलै की तरह दुनिया भर में भारत को एक विफल देश के रूप में प्रस्तुत किए जाने का सामना करने को तैयार रहिए।
इस वर्ष अग्निवीर योजना को लेकर देश के कई भागों में हिंसा हुई। वाराणसी ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे के न्यायालयी आदेश के विरुद्ध हिंसा और और दंगे का दृश्य भी सामने रहा। 2023 में भी हमें इसके विस्तार के लिए तैयार रहना होगा। साबित हो गया कि इनके पीछे ऐसे संगठनों की भूमिका है जो देश को हिंसा और अराजकता में झोंकने के लिए सक्रिय है। न्यायालय ने मथुरा के शाही ईदगाह मस्जिद में भी सर्वे का आदेश दे दिया है। इस वर्ष ज्ञानवापी और मथुरा श्री कृष्ण जन्मभूमि विवाद में संभव है कोई फैसला भी आए। फैसला नहीं भी आए तो सुनवाई और न्यायालयों की टिप्पणियों तथा वादी – प्रतिवादी पक्षों की गतिविधियों से माहौल गर्म रहेगा। भारत विरोधी तथा देश के अंदर सक्रिय जेहादी आतंकवादी कट्टरपंथी शक्तियां इसका लाभ उठाकर सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश करेंगी। नूपुर शर्मा मामले में सिर तन से जुदा करने के लगते नारे तथा उसके आधार पर उदयपुर से अमरावती तक हुई सिर तन से जुदा की घटनाओं के आरोप पत्र में है कि हत्यारे और उनको सहयोग करने वाले समूह कट्टरपंथी समूहों से जुड़े थे और उनका मानस बदला जा चुका था। उदयपुर के हत्यारे पाकिस्तान स्थित दावत-ए-इस्लामी संगठन से जुड़े थे तो अमरावती के तब्लीगी जमात से।
इस तरह की मानसिकता इन गिरफ्तार हुए कुछ ही लोगों तक सीमित नहीं होगी। इसका विस्तार हुआ होगा और ज्यादा मजहबी कट्टरपंथी हिंसक मॉड्यूल तैयार हुए होंगे। वे दूसरे बहाने कुछ बड़ी घटनाएं करने की कोशिश करेंगे। जम्मू कश्मीर में साल के अंत में हमने देखा कि पाकिस्तान से प्रवेश कर गए चार आतंकवादी भारी हथियार लेकर बड़े हमले करने जा रहे थे। 4 घंटे से ज्यादा मुठभेड़ के बाद उन पर काबू पाया जा सका। सरकार जम्मू कश्मीर में चुनाव आयोजित कराने की तैयारी कर रही है, इसलिए ये शक्तियां वहां ज्यादा आक्रामक होकर हिंसा का षड्यंत्र रचेंगी।
जब भी भारत जैसा देश अपनी समस्त संभावनाओं को पहचान कर विश्व की पहली पंक्ति के देशों के समक्ष होने की कोशिश करता है तो उसे बाहरी एवं आंतरिक अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। भारत कई वर्षों से इसी दौर से गुजर रहा है। जाहिर है, 2023 इससे बिल्कुल अलग नहीं हो सकता। चीन ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग में सैनिक घुसपैठ करने की कोशिश ही इसलिए की ताकि भारत को दबाव में रखा जाए। जून, 2020 में गलवान में चीनी सैनिकों ने घुसपैठ करने का दुस्साहस किया था और उसके परिणामस्वरूप कोरोना प्रकोप से जूझते हुए भी भारत को सीमा सुरक्षा की दृष्टि से हर वह कदम उठाना पड़ा था जो कोई देश आसन्न युद्ध को देखते हुए उठाता है। चीन के कारण भारत को भारी खर्च उठाते हुए ऐसी स्थिति में लंबे समय तक रहना पड़ेगा। रूस यूक्रेन युद्ध के कारण विश्व में तेल के दाम और खाद्यान्नों की वैश्विक समस्या भारत को भी प्रभावित कर रही है। 2022 में प्रमुख देशों ने भारत एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ऐसा व्यक्तित्व मान लिया जो व्लादिमीर पुतिन से बात कर युद्ध रुकवाने में भूमिका निभा सकते हैं। भारत व्यापक हितों का ध्यान रखते हुए युद्ध में कोई पक्ष बनने से स्वयं को बचाया है। इस कारण अमेरिका और यूरोप सहित नाटो के देश नाखुश भी हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इनको सही जवाब दिया और कहा कि जब चीन हमारी सीमाओं पर अतिक्रमण कर रहा था, तो आप सुझाव दे रहे थे कि उनके साथ व्यापार बढ़ाएं। 2023 में भारत की विदेश नीति इसी तरह प्रखर रहेगी जिनकी चुनौतियां भी होंगी। संयुक्त राष्ट्रसंघ तनाव को दूर करने में पहले की ही भांति लाचार साबित हुआ है। भारत की नीति 2022 में भी संयुक्त राष्ट्र को महत्त्व देने और उसके सानिध्य में तनाव को सुलझाने की रही। इसमें सफलता नहीं मिली। चीन द्वारा ताइवान की सैनिक घेरेबंदी भी भारत की चिंता का कारण है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ताइवान के विरुद्ध किसी तरह की कार्रवाई की तो भारत के लिए निरपेक्ष रहना कठिन होगा। जी 20 का अध्यक्ष होने के कारण भारत मेजबानी की तैयारी में 2022 से ही लग गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी टीम ने जी-20 के लिए नया थीम दिया है और उसके अनुरूप प्रमुख देशों की बैठक में विश्व को दिशा देने की कोशिश होगी।
वर्तमान भारत की प्रमुख चुनौती विदेश एवं रक्षा नीति पर भी राजनीतिक एकता का न होना है। जिस तरह चीन के मुद्दे पर कांग्रेस सहित विपक्ष ने अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की उसकी प्रतिध्वनि इस वर्ष भी गुंजित होती रहेगी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव जैसे दो बड़े नेता मोदी विरोधी राष्ट्रव्यापी गठबन्धन की कवायद कर रहे हैं। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा उत्तर प्रदेश और पंजाब से जम्मू कश्मीर तक जाएगी। राजस्थान में प्रवेश करने के साथ भारत जोड़ो यात्रा पर भाजपा ने जो स्टैंड लिया है उसको आधार बनाएं तो कह सकते हैं कि जम्मू कश्मीर जाते-जाते भी विवाद बना रहेगा। यात्रा में सम्मिलित भाजपा, संघ और मोदी विरोधी एनजीओ सहित अन्य समूहों ने आपसी एकता बनाने की कोशिश की है। संभव है सरकार के विरुद्ध कोई बड़ा आंदोलन और संघर्ष आरंभ करने की कोशिश हो। शाहीनबाग से लेकर कृषि कानून विरोधी आंदोलनों को आधार बनाएं तो यह केंद्र और प्रदेश की भाजपा सरकारों के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ सकती है। कृषि कानून विरोधी आंदोलन का लाभ उठाकर विदेश में बैठी खालिस्तान समर्थक शक्तियों ने किस ढंग से भारत को बदनाम करने और पंजाब में नए सिरे से विरोध पैदा करने की कोशिश की यह सामने है। पंजाब में 2022 में खालिस्तान समर्थक जुलूस निकले, पूरे वर्ष हथियारों के जखीरे और आतंकवादी पकड़े गए हैं , कुछ विस्फोट भी हुए हैं। पंजाब 2023 में एक बड़ी चुनौती के रूप में उपस्थित रहेगा।
2024 लोकसभा चुनाव की दृष्टि से 2023 महत्वपूर्ण राजनीतिक गतिविधियों का वर्ष है। दिल्ली एमसीडी में विजय से आम आदमी पार्टी का उत्साह बढ़ा है। गुजरात में भी उसने कांग्रेस के वोट में अच्छी सेंध लगाई है। इस वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों मे शायद कर्नाटक में वह हाथ आजमाये। पंजाब से वह कांग्रेस को सत्ताच्युत कर चुकी है। कांग्रेस के लिए आम आदमी पार्टी 2023 में भी राजनीतिक चुनौती बनी रहेगी। कांग्रेस के लिए भाजपा से ज्यादा विपक्षी दल ही चुनौती हैं। त्रिपुरा चुनाव में अगर तृणमूल कांग्रेस ने ताल ठोंका तो कांग्रेस के लिए समस्याएं खड़ी होंगी। भाजपा एवं कांग्रेस के लिए कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश त्रिपुरा आदि के चुनाव काफी महत्वपूर्ण है। त्रिपुरा वाम मोर्चा विशेषकर माकपा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें सरकारों के लिए बड़ी चुनौती विकास की उचित और कठोर नीति को बनाए रखना होगा। चुनावों के कारण सरकारें लोकप्रियतावादी नीतियों की ओर बढ़ती हैं और इससे वास्तविक विकास एवं अन्य आवश्यक कार्य हाशिये में चले जाते हैं। हिमाचल चुनाव में कांग्रेस ने पुरानी पेंशन बहाली का वादा किया था जिसका भाजपा ने अलोकप्रियता का जोखिम उठाते हुए भी विरोध किया। उम्मीद करनी चाहिए कि केंद्र और भाजपा की प्रदेश सरकारें तथा दूसरी पार्टियों की सरकारें देश की अर्थव्यवस्था को जोखिम पहुंचाने वाले कदम नहीं उठाएगी।