कंझावला मामले में पुलिस की काबलियत पर लगा सवालिया निशान
इंद्र वशिष्ठ
कंझावला मामले में पुलिस को मौके से लगातार सूचना देने और आरोपियों की कार का पीछा करने वाले दीपक का बयान अफसरों के दावे और पुलिस की कार्यप्रणाली/व्यवस्था की पोल खोलने के लिए पर्याप्त है. इस मामले में डीसीपी हरेन्द्र सिंह द्वारा की गई शुरुआती कार्रवाई ने उनकी पेशेवर काबलियत पर सवालिया निशान लगा दिया है.
कमिश्नर की भूमिका पर सवालिया निशान-
इस मामले ने पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा की भूमिका पर भी सवालिया निशान लगा दिया है. कमिश्नर द्वारा इस मामले में अभी तक निकम्मे पुलिसकर्मियों और नाकाबिल अफसरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. सुलतान पुरी में हुए एक्सीडेंट के समय से लेकर अभियुक्तों के पकड़े जाने तक दीपक और किस किस व्यक्ति ने पीसीआर को कितने फोन कर आरोपियों की कार के बारे में सूचना दी थी. इसका तो सारा रिकार्ड पुलिस कंट्रोल रूम में है ही. यह रिकार्ड ही पुलिस की पोल खोल देगा. पुलिस कमिश्नर उस रिकार्ड के आधार पर ही आसानी से यह पता लगा सकते हैं कि इस मामले में सूचना मिलने के बाद भी पुलिस ने आरोपियों की कार को क्यों नहीं पकड़ा. सूचना मिलने के बाद पुलिसकर्मियों और अफसरों ने क्या क्या प्रयास अभियुक्तों को पकड़ने के लिए किए थे. वैसे एक बात तो बिलकुल स्पष्ट है कि पुलिसकर्मियों ने अगर प्रयास किया होता तो कार सवार तुरंत पकड़े जाते.
सिर झुकना चाहिए- दिल्ली के उप राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने कहा कि कंझावला-सुल्तानपुरी में हुए अमानवीय अपराध पर मेरा सिर शर्म से झुक गया है और मैं अपराधियों की राक्षसी संवेदनहीनता से स्तब्ध हूं। उप राज्यपाल और पुलिस कमिश्नर का सिर तो उन पुलिसकर्मी की करतूत पर भी झुकना चाहिए जिन्होंने आरोपियों की कार को रोकने/ पकड़ने की कोशिश ही नहीं. सिर्फ सिर ही नहीं झुकाना चाहिए बल्कि उन पुलिसकर्मियों और अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए.
लाश कफ़न में है क्या ?- कंझावला थाना के लाड पुर गांव के दीपक दहिया ने एक जनवरी को तड़के तीन बज कर 18 मिनट पर पीसीआर को सूचना दी कि कुतुब गढ़ की ओर जा रही ग्रे रंग की बलेनो कार में नीचे एक लाश फंसी/अटकी हुई है. पीसीआर द्वारा दीपक को फोन कर यह पूछा जाता है कि बताओ लाश कफ़न में है या वैसे ही है. दीपक ने बताया कि लाश नग्न अवस्था में है. पीसीआर द्वारा दीपक से यह सवाल पूछने का कोई औचित्य नही था.
पल पल की सूचना दी- इसके कुछ देर बाद पीसीआर ने फिर दीपक को फोन करके ओर जानकारी ली. दीपक ने बताया कि वह कार करीब साढ़े तीन बजे उसकी दुकान के सामने से वापस कंझावला की ओर गई. दीपक ने कार का पीछा किया. कार का नंबर भी पुलिस को बताया. कार कंझावला से फिर वापस मुडी. इसके बाद जौंती गांव के पास से फिर वापस कंझावला की ओर मुड़ गई.
पुलिस ने नहीं पकड़े-
इस बार दीपक ने पाया कि तब कार के नीचे लाश नहीं थी. दीपक कार का पीछा करता रहा. पंजाब खोड़ की ओर से एक पुलिस गाड़ी आई, लेकिन वह भी कराला स्कूल के पास जा कर रुक गई. दीपक ने कार का पीछा करना जारी रखा. बेगम पुर में खड़ी एक अन्य पीसीआर गाड़ी में सवार पुलिसकर्मियों को दीपक ने वहां से गुजर रही उस कार के बारे में बताया, लेकिन पुलिसकर्मियों ने उस कार को रोकने की कोई नहीं की.
नशे में पुलिस-
दीपक ने बताया कि पीसीआर पर तैनात पुलिस कर्मी नशे में थे. पुलिसकर्मियों ने तो दीपक की बात सुनने की भी जहमत भी नहीं उठाई. इसके बाद वह कार अवंतिका की ओर चली गई.
पुलिस ने पकड़ना ही नहीं चाहा- पुलिस के रवैये से निराश होकर दीपक भी वहां से वापस लौट गया. दीपक ने कहा कि जब प्रशासन ही पकड़ना नहीं चाह रहा था, तो मैं क्या कर सकता था. दीपक द्वारा बताया गया यह सारा विवरण पुलिस व्यवस्था और अफसरों के दावों की पोल खोल देता है. पुलिस अफसर जनता से अपराध के मामले में सहयोग करने की अपील करते रहते है. लेकिन दीपक जैसे जागरूक युवक ने तो पुलिस को गाडी का नंबर बताया और खुद भी उस कार का पीछा किया. लेकिन पुलिस जिप्सी पर तैनात पुलिसकर्मियों ने ही अभियुक्तों की कार को रोकने/ पकड़ने की कोई कोशिश नहीं की. अफसरों को दीपक के इस बयान के आधार पर ही तुरंत उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई कर देना चाहिए थी.
एसएचओ सड़कों पर उतरे या नहीं- अफसरों द्वारा दावा किया जाता है कि पुलिस निरंतर गश्त करती है पिकेट लगा कर चेकिंग की जाती. इस दावे की पोल भी इस मामले ने खोल दी. दीपक ने पीसीआर को इस संगीन मामले की सूचना दी थी आला अधिकारियों को बताना चाहिए कि इस सूचना के बाद संबंधित थाने/ जिले के कितने एसएचओ, एसीपी आदि सड़कों पर उस कार को पकड़ने के लिए लगे थे. अगर ये सब सड़कों पर थे तो कार सवार उनसे तभी क्यों नहीं पकडे़ गए. जबकि कंझावला से कुतुब गढ़ के बीच में तो कार ने कई चक्कर लगाए थे और दीपक पीछा करते हुए पल पल की खबर भी पुलिस को दे रहा था.
डीसीपी हरेन्द्र सिंह की भूमिका पर सवालिया निशान- बाहरी जिले के डीसीपी हरेन्द्र सिंह ने एक जनवरी को मीडिया को बताया कि यह मामला पूरे तौर पर फैटल एक्सीडेंट (जानलेवा/घातक दुर्घटना) का है. कार चलाने वाले लोग पीड़िता को काफी दूर तक घसीटते हुए ले गए. इस सिलसिले में लापरवाही/ असावधानी से वाहन चलाने के कारण हुई मौत का मामला धारा 279,304 ए के तहत दर्ज किया गया है.
बिना तफ्तीश निष्कर्ष निकाला- डीसीपी ने अपने बयान में साफ कहा कि अभियुक्त पीड़िता को घसीटते हुए ले गए. लेकिन इसके बावजूद डीसीपी ने हल्की धारा में मामला दर्ज करके और ऐसा बयान देकर एक तरह से बिना तफ्तीश के खुद ही यह साबित कर दिया कि अभियुक्तों को मालूम ही नहीं था कि उनकी कार के नीचे लड़की फंसी हुई है. जबकि अभियुक्तों ने जानबूझकर ऐसा किया या उन्हें पता ही नहीं चला कि लड़की नीचे फंसी हुई है. यह बात तो तफ्तीश पूरी होने के बाद ही स्पष्ट हो सकती है. मान लो कि अभियुक्तों ने जानबूझकर लड़की को घसीटा हो तो भी वह तो यही कहेंगे कि लड़की के नीचे फंसी होने के बारे में उन्हें मालूम नहीं था. ऐसे में पुलिस की सही तफ्तीश से ही सच्चाई सामने आ सकती है. हालांकि बाद में हंगामा होने पर सोमवार को पुलिस ने गैर इरादतन हत्या की धारा 304 इस मामले में जोड़ दी.
विकास ने भी पुलिस को सूचना दी- जमेटो में काम करने वाले विकास ने भी मीडिया को बताया कि ढाई से तीन बजे के बीच महाराजा अग्रसेन रोड पर उसकी बाइक उस कार से टकराने से बच गई. तभी उसने कार में लड़की फंसी हुई देखी थी. जिसकी सूचना उसने अपाचे बाइक सवार दो पुलिसकर्मियों को दी थी. विकास की सूचना पर इन पुलिसकर्मियों ने क्या कार्रवाई की यह भी खुलासा अफसरों को करना चाहिए.
दर्दनाक मौत- 31 दिसंबर को आधी रात के बाद सुलतान पुरी में कार ने स्कूटी को टक्कर मार दी. पुलिस के अनुसार कार बैक की गई, उसी दौरान अंजलि (20) उसके नीचे फंस गई. कंझावला इलाके में सुबह चार बजकर 11 मिनट पर लड़की की लाश मिली थी.
लड़की का शव पीठ के बल पड़ा हुआ था.शव को पलट कर देखा गया तो रौंगटे खड़ा करने वाला दृश्य था. लड़की के सिर के पिछले हिस्से से कमर तक चमड़ी उतरी हुई थी. हड्डियां नज़र आ रही थी.
सुलतान पुरी पुलिस ने इस मामले में अमित खन्ना, दीपक खन्ना, मनोज मित्तल, कृष्ण और मिथुन को गिरफ्तार किया है. कार दीपक उर्फ कालू चला रहा था. मिथुन उसके बगल में बैठा हुआ था.