बच्चे जिंदगी को दिशा देते हैं, पर खुशी घट जाती है : रिपोर्ट
बच्चे जिंदगी को दिशा देते हैं, पर खुशी घट जाती है : रिपोर्ट
यूरोप के 30 देशों में किए गए एक नए अध्ययन से सामने आया है कि माता-पिता अपने जीवन को भले ही अधिक अर्थपूर्ण और मूल्यवान मानते हैं, लेकिन वे अक्सर जीवन से कम संतुष्ट होते हैं।
डॉयचे वैले परविवेक कुमारकी रिपोर्ट-
क्या बच्चों का होना जीवन को बेहतर बनाता है? इस सवाल का जवाब शायद पहले जितना सरल नहीं रहा। जर्मनी के कोलोन विश्वविद्यालय द्वारा पूरे यूरोप में किए गए अध्ययन से पता चला है कि जिन लोगों के बच्चे हैं, वे अपने जीवन को ज्यादा अर्थपूर्ण और मूल्यवान तो मानते हैं, लेकिन उनके जीवन की कुल संतुष्टि अपेक्षाकृत कम है। यह अध्ययन यूरोप के 30 देशों में 43,000 से अधिक प्रतिभागियों पर आधारित है। इसे जर्नल ऑफ मैरिज एंड फैमिली में प्रकाशित किया गया है।
जरूरी नहीं कि संतोष मिले
शोधकर्ता डॉ. आंसगार हुडे कहते हैं कि जिनके बच्चे होते हैं, वे अपने जीवन को अधिक उद्देश्यपूर्ण मानते हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि वे ज्यादा खुश या संतुष्ट हों। उन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि कई बार माता-पिता बिना बच्चों वाले लोगों की तुलना में कम संतुष्ट पाए गए। यह विरोधाभास समाजशास्त्रियों के लिए महत्वपूर्ण और चौंकाने वाला है, क्योंकि पारंपरिक रूप से माना जाता रहा है कि संतान जीवन में स्थायित्व और प्रसन्नता लाती है।
यह अध्ययन दो पहलुओं को केंद्र में रखकर किया गया। जीवन से संतुष्टि और जीवन में अर्थ का अहसास। शोध में पाया गया कि हालांकि माता-पिता अपने जीवन को अधिक सार्थक मानते हैं, लेकिन वे अपने दैनिक जीवन से उतने संतुष्ट नहीं होते। यह असंतोष विशेष रूप से महिलाओं में अधिक देखा गया, खासकर उन महिलाओं में जो अकेली मां हैं, कम उम्र की हैं, जिनकी शिक्षा कम है या जो उन देशों में रहती हैं जहां चाइल्डकेयर की सुविधाएं कमजोर हैं। डॉ। हुड्डे के अनुसार, जहां भी पैरेंटिंग अधिक कठिन होती है, वहां संतुष्टि की कीमत पर जीवन में अर्थ जुड़ता है।
यूरोप के 30 देशों में किए गए एक नए अध्ययन से सामने आया है कि माता-पिता अपने जीवन को भले ही अधिक अर्थपूर्ण और मूल्यवान मानते हैं, लेकिन वे अक्सर जीवन से कम संतुष्ट होते हैं।
डॉयचे वैले परविवेक कुमारकी रिपोर्ट-
क्या बच्चों का होना जीवन को बेहतर बनाता है? इस सवाल का जवाब शायद पहले जितना सरल नहीं रहा। जर्मनी के कोलोन विश्वविद्यालय द्वारा पूरे यूरोप में किए गए अध्ययन से पता चला है कि जिन लोगों के बच्चे हैं, वे अपने जीवन को ज्यादा अर्थपूर्ण और मूल्यवान तो मानते हैं, लेकिन उनके जीवन की कुल संतुष्टि अपेक्षाकृत कम है। यह अध्ययन यूरोप के 30 देशों में 43,000 से अधिक प्रतिभागियों पर आधारित है। इसे जर्नल ऑफ मैरिज एंड फैमिली में प्रकाशित किया गया है।
जरूरी नहीं कि संतोष मिले
शोधकर्ता डॉ. आंसगार हुडे कहते हैं कि जिनके बच्चे होते हैं, वे अपने जीवन को अधिक उद्देश्यपूर्ण मानते हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि वे ज्यादा खुश या संतुष्ट हों। उन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि कई बार माता-पिता बिना बच्चों वाले लोगों की तुलना में कम संतुष्ट पाए गए। यह विरोधाभास समाजशास्त्रियों के लिए महत्वपूर्ण और चौंकाने वाला है, क्योंकि पारंपरिक रूप से माना जाता रहा है कि संतान जीवन में स्थायित्व और प्रसन्नता लाती है।
यह अध्ययन दो पहलुओं को केंद्र में रखकर किया गया। जीवन से संतुष्टि और जीवन में अर्थ का अहसास। शोध में पाया गया कि हालांकि माता-पिता अपने जीवन को अधिक सार्थक मानते हैं, लेकिन वे अपने दैनिक जीवन से उतने संतुष्ट नहीं होते। यह असंतोष विशेष रूप से महिलाओं में अधिक देखा गया, खासकर उन महिलाओं में जो अकेली मां हैं, कम उम्र की हैं, जिनकी शिक्षा कम है या जो उन देशों में रहती हैं जहां चाइल्डकेयर की सुविधाएं कमजोर हैं। डॉ। हुड्डे के अनुसार, जहां भी पैरेंटिंग अधिक कठिन होती है, वहां संतुष्टि की कीमत पर जीवन में अर्थ जुड़ता है।